Saturday, March 21, 2009

बिल्लू बनाम स्लुम्दोग



बिल्लू से मिला दोस्ती का राज़ पर स्लुम्दोग से नहीं मिला ग़रीबी का इलाज़.


बिल्लू चित्रपट मैं दिखाया गया है की कैसे एक आदमी गरीब हालत के होते हुए भी एक अच्छा नागरिक और एक अच्छा दोस्त बन सकता है और दूसरी और कोई आदमी चाहे कितनी ही प्रतिष्ठा पा ले और कितना भी आगे बढ़ जाये फिर भी अपने मूल और वास्तविकता को न भूलते हुए एक अच्छा दोस्त बन सकता है. ****
स्लुम्दोग चित्रपट ने आखिर मैं ओस्कर भी पा लिया और उसके बाद उसको देखने से मैं अपने आप को नहीं रोक पाया लेकिन मुझे इतनी पसंद नहीं आई क्यों की अब तक की उसकी सफलता से मेरे मन में उसके प्रति काफी सारी अपेक्षाएं थी लेकिन अफ़सोस फिल्म मेरी सोच से बहुत जुदा निकली. उसमें इतने अच्छे से नहीं दिखाया गया है की झोपड़पट्टी मैं रहने वाला एक लड़का कैसे इतने सारे जवाब जानता है. हकीकत मैं लड़के के जीवन मैं बनी घटनाओ से वो सारे जवाब जानता है ऐसा दिखाया गया है उसके बदले महेनत करके और कुछ प्रेरणा पा के वो वहां तक पंहुचा एसा दिखाना चाहिए था. हालाकि गरीब और उसकी समस्याओ को थोडा दिखाया गया है लेकिन एक अच्छे दृष्टिकोण का आभाव जुरुर लगता है. संगीत ने रहमान को ओस्कर दिलाया लेकिन गाने पृष्टभूमि मैं है और प्रमुख गाना भी आखिर मैं आता है. **१/२

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